कांच
रुई सी हलकी जिंदगी थी,
जी भर कर जिया मे I
अब्ब तो पत्थर की है,
फिर भी कांच की तरह
संभल संभल के जी रहा हूँ I
................By Me!
रुई सी हलकी जिंदगी थी,
जी भर कर जिया मे I
अब्ब तो पत्थर की है,
फिर भी कांच की तरह
संभल संभल के जी रहा हूँ I
................By Me!
2 comments:
So true!
leee.... kamaal....
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